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Aral Sagar क्यों सूखा पूरा अरल समुंदर। एक समय में यह मध्य एशिया का चौथी सबसे बड़ा झील हुआ करती थी। 😕😕
अराल सागर की कहानी किसी एडवेंचर फिल्म जैसी है – थोड़ी रहस्यमय, थोड़ी रोमांचक और आखिर में दिल को छू जाने वाली। कल्पना कीजिए कि आप एक बंजर मैदान में खड़े हैं, और आपके सामने पुराने जर्जर जहाजों की कतार है। अब सोचिए, यही जगह कभी एक विशाल झील का हिस्सा थी, जहाँ पानी की लहरें थीं, मछलियाँ तैरती थीं, और लोग नावों में घूमते थे। यही अराल सागर की कहानी है – एक समय में यह मध्य एशिया का चौथा सबसे बड़ा झील हुआ करता था, जो कजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान के बीच फैला था।
अराल सागर का पतन एक तरह से 1960 के दशक में शुरू हुआ, जब सोवियत संघ ने इसकी दो बड़ी नदियों, अमू दरिया और सिर दरिया, का पानी कपास की खेती के लिए मोड़ दिया। कपास को "सफेद सोना" कहा जाता था, और इसका बाजार में बड़ा महत्व था, लेकिन इसका नतीजा यह हुआ कि अराल सागर तक पानी पहुँचना ही बंद हो गया। सागर का जलस्तर धीरे-धीरे गिरने लगा, और इसके साथ ही आस-पास की हरियाली भी गायब होने लगी।
कहते हैं, किसी समय इस सागर में इतनी मछलियाँ होती थीं कि मछली पकड़ने का काम यहाँ के लोगों का मुख्य व्यवसाय था। लेकिन पानी कम होने के साथ-साथ मछलियाँ भी खत्म हो गईं। जो लोग कभी इस सागर की बदौलत जीवनयापन करते थे, उन्हें अपनी रोजी-रोटी छोड़नी पड़ी। जैसे-जैसे पानी सूखता गया, वहाँ के लोग भी मजबूर होकर अपने घर-बार छोड़कर दूसरी जगहों पर चले गए।
इस पूरे क्षेत्र में अब जो नमक और रासायनिक तत्व बचे हैं, वे तेज़ हवाओं के साथ उड़ते रहते हैं, जिससे वातावरण भी बदल गया है। सर्दियां पहले से ज्यादा सख्त और गर्मियां बेहद गर्म हो गई हैं। इतना ही नहीं, इन रसायनों से स्थानीय लोग श्वास से जुड़ी बीमारियों और त्वचा संबंधी परेशानियों का सामना कर रहे हैं। यह देखकर दिल दुखता है कि इंसान की छोटी-छोटी गलतियों का कितना बड़ा असर प्रकृति और इंसानी जीवन पर पड़ सकता है।
लेकिन इस कहानी में उम्मीद की भी एक किरण है। कजाकिस्तान ने उत्तरी अराल सागर को कुछ हद तक फिर से जीवित करने की कोशिश की है। वहाँ एक बांध बनाया गया है जिसने कुछ पानी वापस लाने में मदद की है। इस हिस्से में अब मछलियाँ वापस आ रही हैं, और लोग फिर से मछली पकड़ने लगे हैं।
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इस से हमारे वातावरण में ग्रीन हाउस गैसो का प्रमाण बढ़ते जा रहा हैं और वह सूरज की गर्मी को ज्यादा से ज्यादा सोख रही है । इसी से पृथ्वी का तापमान बढ़ता जा रहा है इसी को जलवायु संकट Aral Sagar disaster in hindiकहते है
जिसके नती पृथ्वी के हर इलाकों माने हमारे देसो में देखें जा रहे हैं। सैटेलाइट से ली गई यह तस्वीरे बताती हैं की कजाकिस्तान और उज़्बेकिस्तान में फैला अरल सागर जैसे {सन 2000 से 2018 }के बीच लगातार सिमटता गया है। 67000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र फल के साथ अरल सागर को कभी दुनिया में मीठे पानी की चौथी सबसे बड़ी झील माना जाता था। लेकिन आज यह झीलAral Sagar disaster अपने मूल आकर का सिर्फ 10 फ़ीसदी हिस्सा बचा है । जंग लग चुकी यह नौकाएं बस अब इस बात का सबूत रह गई है की यहां कभी पानी हुआ करता था । यह हाल और एक सवाल सिर्फ इस झील का नहीं है बल्कि दुनिया भर में ताजा पानी की सबसे बड़ी जिल का है ।
जिलों के पानी सुख ने की वजह
इस पृथ्वी पर सेसब से बड़ी झीलों और जलाशाओं में से पानी तेजी से सुख रहा है। वह पानी गर्मी की वजह से भाप बनके वातावरण मे जरा है यह बात विज्ञान पत्रिका साइंस में प्रकाशित एक शोध में कहीं गई है बालाजी राज गोपालन इस शोध रिपोर्ट के लेखन में से एक हैं और अमेरिका की कोलोरेडो यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं । 50%से दुनिया में ताज पानी की आधी झीलों में पानी घटना जा रहा है। और यह हमारे लिए सोचने वाली बात है । स्टोरेज और वॉल्यूम अबाउट 25% ऑफ दुनिया के 25 फ़ीसदी लोग जिलों के पास रहते हैं । ड्राइंग राजगोपालन कहते हैं की विज्ञान और पर्यावरण जगत में नदियों पर तो बहुत ध्यान दिया जाता है लेकिन झीलों की ठीक से निगरानी नहीं की जा रही है जबकि जल सुरक्षा में उनकी हम भूमिका है साइंस पत्रिका में छापे अध्ययन के लिए दुनिया की 2000 सबसे बड़ी झीलों की पड़ताल की गई और इससे पता चला की वो हर साल 215 खराब लीटर पानी गाव रही हैं यहां तक की जिन इलाकों में बारिश ज्यादा हो रही है वहां भी झील सिकुड़ रही है। इसकी वजह यह है की तापमान बढ़ाने से वातावरण ज्यादा पानी सुख रहा है यानी ज्यादा पानी भाप बनकर उड़ रहा है दूसरा झीलों से ज्यादा से ज्यादा पानी सिंचाई बिजली बनाने और पीने का पानी माहिया करने के लिए निकाला जा रहा है। इन झीलों में पानी घट के लिए वैज्ञानिकों कई वजह को जिम्मेदार मानते हैं क्लोज तू 50% स्लाइटली ली डेन डेट 50% या
उससे कुछ कम के लिए तो इंसानों की पानी की खपत और तापमान जिम्मेदार है और टेंपरेचर और होना और फिर 8 से 10% के लिए दूसरे कारक जिम्मेदार हैं अध्ययन में बड़ी झीलों को इसलिए लिया गया ताकि सैटेलाइट से मिली तस्वीरें के आधार पर सटीकता से नतीजा निकले जा सकें इसके अलावा इंसानों के साथ साथ वन्यजीवों के लिए भी इन बड़ी झीलों की कहानी ज्यादा अहमियत होती है रिसर्चर कहते हैं की झीलों का पानी घटना का यह मतलब नहीं है की उन इलाकों में लोग पीने के पानी को तरसते लगेंगे लेकिन हां झीलों के पानी के लिए प्रतियोगिता तो बढ़ेगी
2*पानी की रिसर्च
रिसर्चर कहते हैं की कुछ इन सालों में हम 1से 1/2 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पर कर लेंगे सोचिए इस सदी के आखिर तक हालात कितनी गंभीर हो जाएंगे भारत मे दिल्ली शहर में इस साल {मई }का महीना बीते 36 साल में सबसे ठंडा मई के महीने के तोर पर दर्ज हुआ इसकी वजह बीच-बीच में बारिश पड़ने को माना जा रहा है मानसून से पहले की इस बारिश ने लोगों को तो राहत दी लेकिन इससे जलवायु में हो रहे बदलाव का भी इशारा मिलता है जिसकी वजह से धरती के औसत तापमान में वृद्धि होती जा रही है एक ताज रिसर्च कहती है की पृथ्वी के दक्षिणी गोलार्ध में गर्मी आने वाले सालों में बहुत सारे लोगो मुस्किल का सामना करना पड़ेगा
पृथ्वी के दक्षिणी गोलार्ध में गर्मी आने वाले सालों में बहुत सारे लोगो का जीना मुश्किल कर शकता है खासकर भारत नाइजीरिया और इंडोनेशिया के कुछ इलाके सबसे ज्यादा प्रभावित हो सकते हैं नीदरलैंड ब्रिटेन और चीन के रिसर्चरों का यह शोध नेचर सस्टेनेबिलिटी मैगजीन में छाप है मैं तो उम्मीद करता हूं की यह स्टडी हम सब को इस बात के लिए ज्यादा से ज्यादा प्रोत्साहित करें की हम वैश्विक तापमान वृद्धि की 1/2 डिग्री सेल्सियस की सीमा के ज्यादा से ज्यादा करीब रहने के लिए अपने प्रयासों को दोगुना कर दें.
और 2.5 डिग्री सेल्सियस के करीब ना पहुंच जैन अल में हर शून्य दशमलव 1 डिग्री सेल्सियस तापमान से भी असर पड़ेगा तापमान में हर शून्य दशमलव 1 डिग्री सेल्सियस कम वृद्धि के साथ हम पीड़ित लोगों की संख्या 14 करोड़ घाट सकते हैं तो कारगर जलवायु कदमों के लिए यह बड़ी संख्या है इस अध्ययन में बेहद उदार गणना के साथ भी इस सदी के आखिर तक तापमान में 2.5°c की वृद्धि का अनुमान लगाया गया है
इस सदी के आखिर तक तापमान में 2.5°c की वृद्धि का अनुमान लगाया गया है इस हिसाब से लगभग दो अरब लोग काफी विषम परिस्थितियों में र रहे होंगे इसीलिए रिसर्चर कहते हैं की तापमान वृद्धि को रोकने के प्रयासों में तेजी लानी होगी और देश ट्रिप और हाय लाइट्स इस रिपोर्ट में यह कहा गया है की गर्मी जितनी बढ़ती जाएगी खतरनाक परिस्थितियों में रहने वाले लोग उतने ही ज्यादा होंगे । अत्यधिक गर्मी से मरने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ेगी लेकिन ये कहना होगा की 1/2 डिग्री सेल्सियस कोई जादू नंबर नहीं हैआज 1,2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ ही लोग मान रहे हैं। जलवायु परिवर्तन का असर कहां-कहां हो रहा है सब जगह हमारी सेहत पर खाना उगने की हमारी क्षमता पर हमारे रहने की जगह पर हमारी सुरक्षा पर और हमारे काम पर भी जितना तापमान बढ़ता जाएगा उतनी ही ज्यादा पृथ्वी पर मौजूद बर्फ पिघलेगी और समुंदर मे जल स्तर बढ़ेगा ।
जितना तापमान बढ़ता जाएगा उतनी ही ज्यादा पृथ्वी पर मौजूद बर्फ पिघलेगी और उतना ही ज्यादा सगरो का जल स्तर बढ़ता जाएगा मालदीव्प फिजी से शेल्फ और तुवालु जैसे बहुत सारे देश टापू पर बसे देस है हैं जलवायु परिवर्तन की वजह से उन पर डूबने का खतरा मंडरा रहा है और खतरा सिर्फ टापू पर रहने वाले लोगों को नहीं है बल्कि दुनिया में मौजूद सभी लोग जलवायु परिवर्तन के असर कहानी ना कहानी महसूस कर रहे हैं आपने भी देखा होगा की आपके इलाके में मौसम कुछ बादल हो रहा है अचानक बिन मौसम बारिश हो रही है तो कही पर सूका पड रहा है कही पे भयानक तूफान आ रहे हैं तो कही पे बाढ़ आ रही है आपके इलाके में मौसम किस तरह बादल रहा है आप खुद जाच कीजिए अगर कुछ अलग नजर आ रहा है तो समज जाइए की जल वायु संकट आ रहा है
धन्यवाद